भगवान की भूल प्रदीप श्रीवास्तव भाग-6 घर का कोना-कोना मुझे चीत्कार करता नज़र आ रहा था। मुझे छोटा सा अपना घर अचानक बहुत बड़ा भूतहा महल सा नज़र आने लगा। किसके कंधे पर सिर रखकर मां के दुख में आंसू बहाऊं। कहीं कोई नहीं दिख रहा था। मेरा मन उस दिन पहली बार एकदम तड़प उठा, छटपटा उठा कि काश परिवार में और सदस्य होते। काश मां-पापा ने और बच्चे पैदा किए होते। मेरे भी भाई-बहन होते। सब एक दूसरे का सहारा बनते। काश मैं भी किसी को जीवन साथी बना लेती। या कोई मुझे साथ ले लेता। कोई अपंग