इस दश्त में एक शहर था अमिताभ मिश्र (2) मैं जो ये किस्सा शुरू कर रहा हूं वो एक छत के नीचे रहने वाले परिवार से खिचता हुआ जाता है पूरे कसबे तक जो अब महानगर की शकल ले रहा है। फिलहाल बच्चा महानगर है इसलिए कुछ निशान हैं यहां इंसानियत के अपनेपन के भूले भटके लोग हैं यहां जो तब भी पागल थे और अब तो एकदम ही निकले हुए इंतिहाई पागल हैं । ये बात है एक पंडित खानदान की, जो बसा है एक कस्बे में जिसकी रगों में खुशबू का व्यापार दौड़ रहा है। चूंकि घर पंडितों का