एक जिंदगी - दो चाहतें - 24

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एक जिंदगी - दो चाहतें विनीता राहुरीकर अध्याय-24 'एक बार पता नक्सलियों के पीछे हम पन्द्रह दिनों तक रात दिन जंगलों में घूमते रहे थे। हम दस लोग थे और हमारे पास दो जीपें थीं। साथ में लाया हुआ राशन खत्म हो गया था आखरी तीन दिन से तो हम लोग सिर्फ घूँट-घूँट पानी पीकर बंजर ईलाकों की खाक छान रहे थे। कई रातों से हम लोग सोए नहीं थे और पेट में अन्न का एक दाना भी नहीं गया था। परम पनीर के चौकोर टुकड़े करते हुए एक पुराना किस्सा याद करके सुनाने लगा। आखरी वाक्य सुनते हुए तनु