फ़ैसला - 8

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फ़ैसला (8) आज सबेरे ही मुझे बहुत अजीब लग रहा था। दिल में रह रहकर घबड़ाहट होने लगती थी। ऐसा होने पर सीना पकड़ कर जब मैं बैठ जाती तो बेटी आस्था दौड़ते हुए आती क्या हुआ मम्मी...!कहती । उसके इतना कहते ही मेरा कष्ट अपने आप कम हो जाता था। और मैं बेटी को अपने सीने से चिपका लेती। वह अपने छोटे-छोटे हाथों से मेरे गालों पर ढुलक आए आंसुओं को पोंछ रही थी। उसके ऐसा करते ही मेरा हृदय द्रवित हो आया था। बरबस ही मेरे ओंठ बेटी का चुम्बन करने लगे थे। आज बेटी आस्था के ऊपर