राहबाज - 4

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रोज़ी की राह्गिरी (4) मेरा नशा दिन के हर पहर की अपनी एक अलग तासीर होती है. रात की तासीर अँधेरे से उपजती है और नशे में ढलती है. मैं तो दिन रात एक नशे में रहती हूँ. मेरे होने का नशा. मेरी ज़िन्दगी को पल-पल एक-एक घूँट रस ले कर पीने का मज़ा. मैं जानती हूँ ये ज़िन्दगी मुझे इस बार कई कोशिशों के बाद मिली है. मैं इसे गवाना नहीं चाहती. मैं हर सुबह एक खुमारी के साथ उठती हूँ. दिन चढ़ता जाता है और मैं काम के नशे में चूर होती जाती हूँ. मेरा काम शुरू होता