एक जिंदगी - दो चाहतें - 23

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एक जिंदगी - दो चाहतें विनीता राहुरीकर अध्याय-23 दूसरे दिन सुबह तनु की नींद खुली तो सूरज निकल आया था परम विस्तर पर नहीं था। वह उठकर नीचे आयी तो देखा वह किचन में चाय बना रहा था। तनु ने उसकी कमर में हाथ डाले और उसकी पीठ से लिपट गयी। 'सुबह-सुबह उठकर मुझे छोड़कर मत जाया करो। 'अरे कहीं गया कहाँ। यहीं तो आया था किचन में चाय बनाने। परम ने चाय छानते हुए जवाब दिया। तो मुझे भी उठा दिया करो। तनु ने उनींदे स्वर में कहा। 'पर क्यों? 'मुझे आँखेंं खुलते ही आपका चेहरा देखना अच्छा लगता