भगवान की भूल प्रदीप श्रीवास्तव भाग-4 जैसे कॉलेज के दिनों की ही बातें लूं। अपनी मित्र गीता यादव को मैं तब फूटी आंखों देखना पसंद नहीं करती थी। क्योंकि वह लंबी-चौड़ी पहलवान सी थी। मुझे बच्चों कि तरह गोद में उठा लेती थी। सारे मिलकर खिलखिला कर हंसते थे। इतना ही नहीं तब मैं उसे मन ही मन खूब गाली देती थी जब वह मेरे अंगों से खिलवाड़ कर बैठती थी। मगर एक बात उस में यह भी थी कि और किसी को वह मुझे एक सेकेंड भी परेशान नहीं करने देती थी। मेरे लिए सबसे भिड़ जाती थी ।