मुख़बिर - 13

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हम लोग पहाड़ी से नीचे उतरे । सामने की पंगडंडी से दूधवालों की चार-पांच साइकिलें आती दिख रही थीं । बागी उन्हे देखकर रूके, तो दूधियों की तो हालत ही खराब हो गयी । डरते कांपते वे दूर ही रूक गये थे । श्यामबाबू ने आवाज देकर उन्हे आश्वस्त किया -‘‘ डरो मत सारे हो, हमाये ढिेंग आओ और बस दूध पिला दो ।‘‘ मैंने देखा कि दूध का केन खुलते ही बागी दूध पीने के लिए भूखे टूट पड़े ।