देस बिराना किस्त तीन आंगन में चारपाई पर लेटे लेटे गुड्डी से बातें करते-करते पता नहीं कब आंख लग गयी होगी। अचानक शोर-शराबे से आंख खुली तो देखा, दारजी मेरे सिरहाने बैठे हैं। पहले की तुलना में बेहद कमज़ोर और टूटे हुए आदमी लगे वे मुझे। मैं तुरंत उठ कर उनके पैरों पर गिर गया हूं। मैं एक बार फिर रो रहा हूं। मैं देख रहा हूं, दारजी मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए अपनी आंखें पोंछ रहे हैं। उन्हें शायद बेबे ने मेरी राम कहानी सुना दी होगी इसलिए उन्होंने कुछ भी नहीं पूछा। सिर्फ एक ही वाक्य कहा