अनुगूँज

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अनुगूँज सुधा ओम ढींगरा तापमान इतना गिर गया कि बारिश बर्फ़ बन कर बरस रही है। रुई जैसी नहीं, शीशे जैसी। उसके लिए यह सब अचम्भित करने वाला है। कुछ दिन पहले उसने रुई जैसी बर्फ़ गिरते देखी थी और अब शीशे जैसी। गगन की नीलिमा गहरी हो चुकी है। चारों ओर घुसपुस है। घास, पेड़, पौधे और पहाड़ क्रिस्टल के लग रहे हैं, जैसे किसी ने बना कर वहाँ जड़ दिए हों। वह उन्हें छूना चाहती है। उसे डर है कि चप्पल पहन कर घास पर चलेगी तो शीशे की घास टूट जाएगी। नंगे पाँव उसने घास पर क़दम