ब्राह्मण की बेटी - 2

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ब्राह्मण की बेटी शरतचंद्र चट्टोपाध्याय प्रकरण - 2 ठाकुर-घर से बाहर निकली जगदधात्री दालान में बैठकर कुछ सीने-परोने में मस्त लड़की को कुछ देर तक देखती रही और फिर बोली, “बिटिया, सवेरे-सवेरे यह क्या सी रही हो? दोपहर चढ आयी है, समय की सुध ही नहीं, कब नहाओ-धोओगी, पूजा-पाठ करोगी और फिर कब खाओ-पिओगी? अभी परसों तो तुमने रोग-निवृत होने पर खाना प्रारंभ किया है। इतना अधिक श्रम करोगी, तो दोबारा ज्वर से पीड़ित हो सकती हो।” धागे को दांत से काटकर संध्या बोली, “माँ, अभी बाबू जी तो आये नहीं।” “जानती हूँ, मुफ्त में लोगों का इलाज करने वाले