आधा मुद्दा (सबसे बड़ा मुद्दा) - अध्याय ५

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----- अध्याय ५. मैं पराई जो हूं ----- शादी पर लड़की की रजामंदी न लेना क्या उचित हैं? शादी लड़की की पसंद का न करना क्या सही है? लड़के शादी के नाम पर कई-कई लड़कियों को देखते रहते हैं क्या यह सही है? लड़की को आज भी अपनी पसंद का लड़का चुनने की आजादी क्यों नहीं हैं? लड़की प्रेम कर ले तो, घर की इज्जत दांव पर लग जाती है ऐसा क्यों परिवार वाले, घर वाले ,समाज वाले मानते हैं और लड़का कर ले तो यार अब लड़के ने कर लिया तो क्या करें ऐसे विचार, ऐसी सोच क्यों है? -----