पॉलिटेक्निक वाले फुट ओवर ब्रिज पर - 3 - अंतिम भाग

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श्वेतांश की इस बात पर रुहाना हल्के से हंस दी, फिर बोली, ‘सही कह रहे हो। पहले जब तुमको वहां बस स्टॉप पर लोगों को लिफ्ट देते देखती तो मैं तुम्हें कोई मवाली लफंगा समझती। सोचती अजीब मूर्ख आदमी है। आजकल लोग लिफ्ट मांगने पर भी नहीं देते और यह मूर्ख रोज निश्चित समय पर इधर से निकलता है, सबको लिफ्ट ऑफर करता है, लोगों को बैठा कर ले जाता है। लेकिन जब बहुत दिनों तक रोज ही देखने लगी तो सोचा समाज सेवा का नया-नया भूत सवार है, कुछ दिन में उतर जाएगा।