कृपाराम का इशारा मिला तो हम लोग झटपट चल पड़े । पोजीशन वही थी-आगे कृपाराम और बीच में डरे-सहमे, हम सब । इसके बाद भी हालत वही कि जिसका ऊंचा-नीचा पांव पड़ा या किसी गलती से कोई आवाज हुई कि पीछे से किसी न किसी बागी की निर्मम ठोकर खाना पड़ता हमे । हमारा वो दुबला-पतला साथी शायद भारी वज़न की वज़ह से गिरा ही था कि सारे बागी उसके सिर पर सवार हो उठे थे।