संयोग से हुआ रिश्ता

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् मैं वो दिन कैसे भूल सकती थी । जिस दिन ने मेरी रातों की नींद उड़ा दी थी। वह दिन फिर से मेरी आंखों के सामने तैर गया। जब मैं अपनी बूआ के घर बूआ की बेटी की शादी मे आई थी। और सरजीत अपनी बूआ के घर बूआ से मिलने आए हुए थे।दोनों की बूआओं का घर अगल- बगल था। सरजीत बैठे अपनी बूआ के मंझले बेटे की पत्नी से बतिया रहे थे। मैं भी सरजीत की भाभी को भाभी बुलाती थी। मैं भी दोपहर को भाभी से बतियाने आ जाया करती थी।उस दिन मैं आई तो एक अजनबी