केतकी बेहद खिन्नता का अनुभव कर रही थी. सामने के घर से आती शहनाई की मधुर स्वरलहरी भी आज उसे अप्रिय लग रही थी. मनन से विवाह के लिए ना कर तम्मा ने उसे निराश कर दिया था. बार बार एक कसक उठ रही थी उसके दिल में, काश तम्मा आज मनन से रिश्ते के लिए हामी भर देती तो उसके आँगन भी शहनाई बजती. लेकिन तम्मा की एक ना ने उसके मंसूबों पर पानी फेर दिया. और वह निराशा के गहरे दलदल में धंसती जा रही थी. केतकी के स्वभाव में बहुत बचपना था. पचास वर्ष की परिपक्व