अचंभा तो ये था कि हमारे सामने ही एक देहाती आदमी आया, उसने पर्दा हटा कर भीतर झांका और बिना पूछे ताछे सीधे एसपी के कमरा में घुस गया । उस आदमी का रूतबा देख कर हमने दांतो तले अंगुली दबा ली थी- एक देहाती भुच्च आदमी की इतनी हिम्मत ! जरूर ये कोई नेता-वेता होंगे । लेकिन मन ने विश्वास नही किया था-ऐसे फटीचर आदमी भला कहां से नेतागिरी कर पायेंगे ! जिनके पास खुद खाने नहीं दिख रहा, वो दूसरों को कहां से टुकड़ा डालेंगे ! तो !