एक जिंदगी - दो चाहतें - 18

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'मैं पहले से ही जानती थी। बहुत दिनों से शक हो रहा था मुझे कि आपके जीवन में कोई और लड़की है। मैं तो शुरू से ही आपको पसंद ही नहीं थी। जबरदस्ती गले पड़ी थी आपके। लेकिन इसमें मेरा क्या दोष है। मैं आपको छोड़ नहीं सकती। मैं कानूनन आपकी पत्नी हूँ....। वाणी का प्रलाप बहुत देर तक चलता रहा। 'मैं घर की इज्जत हूँ। गाजे बाजे के साथ घर लाए थे आप लोग मुझे। मैं कोई मिट्टी की प्रतिमा नहीं हूँ कि मन भर गया तो विर्सजन कर दिया।