आधा मुद्दा (सबसे बड़ा मुद्दा) - अध्याय ४

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-----अध्याय ४."कल्पनाओं के सपने |"----- सपनों की बात की जाए तो पुरुष के सपने-सपने होते हैं, वहीँ नारी के सपने-सपने क्यों नहीं होते? नारियां ही अपने सपनों का गला क्यों घोटती है? क्या सपने नारीलिंगी और पुरुषलिंगी होते हैं, कि पुरुषों के सपने ज्यादा मायने रखते हैं और स्त्रियों के सपनों की कम कीमत होती है? लड़की के केस में यह निर्णय कौन लेगा मां-बाप लेंगे ,भाई लेगा ,पति लेगा या खुद चुनने का अधिकार मिलेगा, जिस तरह लड़कों को अपने सपने चुनने का अधिकार रहता है/मिलता है? समान तरह की आजादी, समान तरह का माहौल नारी को कब