बिल्डिंग के सामने उर्षिला ने अपनी लंबी गाड़ी पार्क की ही थी कि सीढिय़ों के पीछे खंभे से सटकर खड़ी वह दिख गई। उर्षिला उसकी निगाहों से नहीं बच सकती थी। चार घंटे पहले वह यहां आ चुकी थी, वॉचमैन को ठीक से पट्टी पढ़ा के, लिफ्ट से ना जा कर दस मंजिल चढ़ कर ऊपर गई, घर में ताला देखा, तो नीचे उतर कर यहां इंतजार करने लगी। लौट कर तो यहीं आएगी पट्टी। उर्षिला बच कर निकल नहीं पाई। ठीक सामने टपक पड़ी माया। भारी कद, अधपके बालों का बना भुस्स जूड़ा, गहरे नीले रंग की साटिन की सलवार-कमीज। चेहरा ठीकठाक था उसका, पर कोई तो बात थी, जो सही नहीं थी।