सरहदों का इश्क़

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पता है... पहले मैं तुम्हे पल पल याद करता था लेकिन अब ऐसा नहीं है क्यूंकि अब मैं तुम्हे भूलता ही नही, मेरी आँखों को एहसास ही नही होता के कब वो सोई, कब जागीं पर ये जब भी मौका पाती हैं निहारती रहती है… ये सरहदें…. ये सरहदें.. जो लोहे की नुकीली तारों की दीवार सी बनी खड़ी हैं l कैसे हमारा इश्क़ मोहताज हो गया है, चन्द कागज़ और धारदार सरहदों का, कहते है इश्क़ सरहदों को लांघ कर भी दिलों को मिला देता है पर पर मेरे इश्क़ का लहू रिसने लगा है अब, इन नुकीली