बिराज बहू - 6

(30)
  • 13.9k
  • 4
  • 5.9k

मागरा के गंज (बाजार) में पीतल के बर्तन ढालने के कई कारखाने थे। मुहल्ले की छोटी जाति की लड़कियां मिट्टी के सांचे बनाकर वहाँ बेचने जाती थी। बिराज ने भी दो दिनों में सांचा बनाना सीख लिया और वह शीघ्र ही बहुत अच्छे सांचे बनाने लगी। इसलिए व्यापारी खुद आकर उसके सांचे खरीदने लगे। इससे वह हर रोज आठ-दस आने कमा लेती थी, पर संकोच के मारे उसने पति को कुछ नहीं बताया।