लंबे डग भरते हुए शौकीलाल जी घर आये। मैं भी साथ था। घर आकर उन्होंने बड़ा अधीर होकर टीवी चलाया। फिर देखने में ध्यान मग्न हो गए। उनकी अधीरता देखकर ऐसा लगा जैसे अभी- अभी उनके घर का छप्पर फटेगा और धन वर्षा शुरू हो जाएगी। मैं खुर्दबीनी नजर से शौकीलाल जी के इकलौते कमरे का कोना-कोना देखने लगा। पूरे कमरे में केवल फिल्मी पत्रिकायें बिखरी पड़ी थीं। रंग बिरंगी पत्रिकायें। विभिन्न भाषाओं की पत्रिकायें। पूरा बॉलीवुड शौकीलाल जी के कमरे में समा गया लगता था। साथ में टीवी वर्ल्ड मैगजीन की प्रति भी धूल फाँक रही थी। सेंटर टेबुल