और तभी परम को लगने लगा उसके मन में तनु को लेकर कोमल भावनाएँ और ईच्छाएँ जन्म लेने लगी हैं। अपने आप में ये ईच्छाएँ बहुत पवित्र और नाजुक हैं मगर सामाजिक दृष्टि से अवांछित है। तब जब भी परम घर जाता वहाँ उसे सब कुछ काट खाने को दौड़ता। उसे लगता कि कब वह अजमेर वापस लौटे और अपने एकांत में तनु के खयालों में खोया रहे। वाणी अक्सर उसे टोकती कि आजकल वह कहाँ खोया रहता है तब परम खीज जाता। लेकिन उसे तत्काल ही खयाल आता कि वह किस राह पर चल पड़ा है। इस राह की कोई मंजिल नहीं है। यह राह ना जाने किन गुमनाम अंधेरी गलियों में भटकती रहेगी और कही नहीं पहुँचेगी।