अमर प्रेम - 7

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आज मुझे ऐसा चुबन चाहिए की मैं तुम्हारे होंटो अपर अपने होंटो का रस घोलते हुए तुम्हारी रूह तक उतार जाऊँ और वह अपने जलते हुए होंट अंजलि के नर्म रसेले होंटों पर रख देता है और फिर धीरे धीरे उसमें अपनी ज़ुबान से रस घोलते हुए सपनों में खोने ही वाला होता है की ठक –ठक ठक अरे अंजलि बिटिया तयार हुई के नहीं कशा का सामी हो गया है। और पंडित जी भी आगाए हैं सभी मेहमान तुम दोनों का इंतज़ार कर रहे हैं।