विद्रोहिणी - 9

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’दो तीन दिन से घायल कन्हैया बिस्तर पर दर्द से कराह रहा था। चौथे दिन कुछ स्वस्थ अनुभव करने पर वह सवेरे अपने काम पर निकल गया। उसके बाद श्यामा अपने काम पर निकल रही थी। उसने देखा कि रास्ते के बीच चंद्रा खडा था। चंद्रा ने अपने दोनों हाथ फैलाकर उसे रोकना चाहा । चंद्रा एक अत्यंत दुष्ट व्यक्ति था। वह लंबा चौड़ा विशालकाय पहलवाननुमा व्यक्ति था। वह श्यामा पर कुदृष्टि रखता था। अचानक उसने झपटते हुए श्यामा का हाथ पकड़ लिया। कुछ समय के लिए तो श्यामा हक्की बक्की रह गई I वह अपना हाथ छुड़ाने की कोशिस करते हुए बोली ‘ मेरे हाथ छोड़ दे वरना बहुत बुरा होगा। ’