इंद्रधनुष सतरंगा - 25 - Last Part

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दो दिन बाद पंद्रह अगस्त था। आतिश जी पार्क में अकेले खड़े थे। बीती हुई यादें मन में उमड़-घुमड़ रही थीं। पहले पंद्रह अगस्त की तैयारियों में सभी लोग जुटते थे। पार्क की पूरी सपफ़ाई होती थी। बाउंड्री-वॉल तो थी नहीं, किनारों पर तिरछे-तिरछे ईंट गड़े हुए थे। उन्हें रंगा जाता था। किनारे-किनारे पड़ी पत्थर की बेंचों को पेंट किया जाता था। पूरे मैदान की सपफ़ाई होती थी। बारिश में उग आई बड़ी-बड़ी घास सापफ़ करके ज़मीन समतल की जाती थी। झंडा लगाने के लिए पार्क के बीचो-बीच एक ऊँचा चबूतरा-सा बना था। उसकी सफाई कर उसके आस-पास चूना डाला जाता था।