पापा मर चुके हैं

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आज एकबार फिर अरनव को बिस्तर पर उसकी इच्छाओं के चरम क्षण में अचानक छोडकर मै उठ आयी थी। अब बाथरूम के एकांत में पीली रोशनी के वृत के नीचे खड़ी आईने में प्रतिबिंबित अपनी सम्पूर्ण विवस्त्र देह की थरथराती रेखाओं की तरफ देखने की त्रासदी झेलने के लिए मैं बाध्य भी थी और अभिशप्त भी... अपने अंदर के उन्माद के इस पल को मैं धैर्य से गुजर जाने देना चाहती थी, मगर जानती थी, यह इतना सहज नहीं होगा! पूरी देह में रेंगती हुई चीटियों की कतारें जैसे अब धीर-धीरे गले के अंदर थक्के बाँधने लगी थीं।