नाटक शुरू हुए एक सप्ताह से अधिक समय हो चुका था । श्यामा के लिए निकल भागने का समय आगया था। आधी रात का समय था। चारों ओर श्याह अंधेरा था। कौशल्या व श्यामा की आंखों में नींद नहीं थी। उन्होने उस स्थान से पलायन की पूरी तैयारी कर रखी थी। पहले कौशल्या उठी। उसने चुपके से बिना आवाज किए बाहर आँगन में झांका। किशन गहरी नींद में सो रहा था। उसने धीरे से सामान की गठरी उठाई व एक बच्चे को पीठ पर लादकर नंगे पैर मंदिर के बाहर निकल आई। उसके पीछे पीछे दूसरे बच्चे को पीठ पर लादे श्यामा भी बाहर आ गई। बाहर घुप्प अंधेरा था।