सत्या पहला पन्ना 1970 के दशक के प्रारंभ की बात है. तब मैं काफी छोटा था. एक दिन सुबह सवेरे मेरे पिता के एक जूनियर कुलीग हमारे घर पर आए और उन्होंने पूरे उत्साह के साथ बीती रात उनके साथ घटी एक धटना का ज़िक्र किया. उस दिन सुनी हुई उस घटना के इर्द-गिर्द ही इस कहानी का ताना-बाना बुना गया है. आरंभ 1 जमशेदपुर शहर नवंबर का महीना. अच्छी ख़ासी ठंढ पड़ने लगी थी. रात काफी हो चुकी थी. सुनसान सड़क पर बिजली के खंभों के नीचे बल्ब की रौशनी के ख़ामोश दायरे पड़े थे. सड़क के दोनों तरफ