बड़ी दीदी - 8 - अंतिम भाग

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कार्तिक के महीना समाप्ति पर है। थोड़ी-थोड़ी सर्दी पड़ने लगी है। सुरेन्द्र नाथ के ऊपर बाले कमरे में खिड़की के रास्ते प्रातःकाल के सूर्य का जो प्रकाश बिखर रहा है, सुरेन्द्र दिखाई दे रहा है। खिड़की के पास ही ढेर सारे बही-खाते और कागज-पत्र लेकर टेबल पर एक ओर सुरेन्द्र नाथ बैठे हैं। अदायगी-वसूली, बाकी-बकाया, जमा खर्चे-बन्दोबस्त, मामले-मुकदमे, फाइल आदि सब एक-एक करके उलटते और देखते थे। इन सब बातों को देखना-सुनना उसके लिए एक तरह से आवश्यक भी हो गया है। न होने से समय भी नहीं कटता है।