कलकत्ता के मकान में अब ब्रज बाबूु के स्थान पर शिवचन्द्र मालिक है और माधवी के स्थान परक अब नई बहू धर की मालिक है। माधवी अब भी वहीं है। भाई शिवचन्द्र स्नेह और आदर करता है लेकिन अब माधवी का वहां रहने को जी नहीं चाहता। घर के दास, दासी, मुंशी, गुमाशते अब भी बड़ी दीदी कहते हैं, लेकिन सभी जानते है कि सन्दूक की चाबी अब किसी और के हाथ में चली गई है, लेकिन यह बात नहीं कि शिवचन्द्र की पत्नी किसी बात में माधवी का निरादर या अवज्ञा करती है, फिर भी वह ऐसा भाव प्रकट करने लगती है जिससे माधवी अच्छी तरह समझ ले कि अब बिंना इस नई स्त्री की अनुमति और परामर्श के उसे कोई काम नहीं करना चाहिए।