लघुकथाएँ (दिव्यदान, कोथली)

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दिव्य दान.......................मोहन सिंह मामूली हैसियत का आदमी था। उसने मेहनत मजदूरी करके अपने बच्चों को आत्मनिर्भर बना दिया था। उसके बेटे- बहू बहुत अच्छे स्वभाव के थे। समय पर उसे खाना मिल जाता था और हारी- बीमारी में दवा दारू भी। बहू- बेटे की बहुत सेवा करते थे। पड़ौस सत्संग भवन में स्वामी भारती जी आए हुए थे। वे कलयुग में राम नाम के महत्व पर प्रकाश डालते हुए बोले "कलयुग केवल नाम अधारा सुमिर सुमिर नर उतरी पारा।" अर्थात एक राम का नाम ही कलयुग का आधार है जिसका सुमिरन करने से मनुष्य संसार रूपी सागर से पार उतर