एक बार जंगल की सत्ता सियारों के हाथ लग गयी। उन्होंने "हुआ-हुआ" की आवाज़ को ही जंगल की राष्ट्रभाषा घोषित करने का निश्चय किया और अंदर ही अंदर जंगल के नियम कानून ताक पर रख कर, घालमेल कर "हुआ-हुआ" कि आवाज़ को ही राष्ट्रभाषा घोषित कर भी दिया क्योंकि पूर्ण बहुमत की सत्ता थी। अब तो क्या कोयल, क्या कौआ सभी को एक ही भाषा बोलनी थी वो भी हुआ-हुआ। सियारों को छोड़ कर बाकी पूरे जंगल मे हंगामा मच गया कि ये तो सर्वथा अनुचित है। जंगल के कोने कोने से बुद्धिजीवी जानवरों ने विरोध में अपने स्वर उठाये