सूट की राम कहानीयशवंत कोठारी ज्यों ही सर्दियां शुरू होती हैं, मेरे कलेजे में एक हूक-सी उठती है, काश मेरे पास भी एक अदद सूट होता, मैं भी उसे पहनता, बन ठन कर साहब बनता और सर्दियों की ठंडी, बर्फीली हवाओं को अंगूठा दिखाता । ज्योंही दूरदर्शन वाले तापमान जीरो डिग्री सेंटीग्रेड हो जाने की सूचना देते, मैं सूट के सब बटन बन्द कर शान से इठलाता । मगर अफसोस मेरे पास सूट न था । आज से बीस बरस पहले शादी के समय ससुराल से एक दो सूट प्राप्त हुए थे, मगर जैसे-जैसे बिवी चिड़चिड़ी होती गई, सूट के