जब घरवाले अपने घर आने वाले होतें हैं तो ढेर सी तैयारियाँ करनी होतीं है, कैसी उत्तेजना भरी ख़ुशी मन में रहती है। तब अपनी थकान पर ध्यान नहीं जाता। बस होता है न --मेहमान-- आये --आये --और चले गए। मन रीता और शरीर थकान से चूर हो जाता है। दामिनी भी थककर, लेटकर अपनी थकान उतार रही है। उसमें हिम्मत नहीं बची है बेतरतीब घर को ठीक करने की। वह एलान कर देती है, ``बिन्दो !बंगले को ठीक करने के लिए जो करना है, तुम करो मेरे से तो हिला भी नहीं जा रहा. बिन्दो बिदक कर कहती है, ``आपसे कह कौन रहा है कि घर ठीक करो ? हमने तो पहले ही आपसे कह दिया था कि दिमाग़ कितना भी घोड़े सा दौड़ा लो लेकिन सरीर की ताकत तो बिन्दो की काम आयेगी। ``