प्रेमिका

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ये एक सामान्य सी सुबह थी इतवार की । सर्दियों की गुनगुनी धूप बालकनी तक आ रही थी। आनंद वहीं बैठे चाय पी रहे थे। दोनों पैर सामने टेबल पर फैलाए, आंखों के सामने अखबार खोले। बच्चे अभी लिहाफ में घुसे मीठी नींद में सोए सपनों की दुनिया की सैर कर रहे थे। इतवार का दिन बहुत से पेंडिंग कामों को निपटाने का दिन भी होता है। आखिर हम दोनों वर्किंग थे। पर धूप मुझे ललचा रही थी। अभी मेड के आने में भी खासा वक्त था। इतवार को वह भी आराम से आती थी। मैंने अपनी चाय ली और बालकनी में आ गई। आनंद ने अखबार से नज़र उठाकर मुझे देखा और फिर से किसी ख़बर में डूब गए। धूप की भली सी सेंक को महसूसते मैंने शरीर को कुर्सी पर ढीला छोड़ा और इत्मीनान से चाय की चुस्कियों के सुख में डूब ही रही थी कि,डोरबेल बज उठी।