वह समय नयना के लिए बहुत कठिन था। विवेक से उसकी बात ही नहीं हो पा रही थी, बहुत कोशिश करती नयना उसका फोन लगाने की पर कुछ दिनों तक तो उसका नंबर व्यस्त आता रहा और फिर नोट रीचेबल आने लगा, शायद उसने अपना नंबर ही बदल लिया था। नयना ने मां से विवेक का नया नंबर इस उम्मीद से मांगा कि मां को तो उसने फोन किया ही होगा पर उन्होंने कोई जवाब ही नहीं दिया। मां पापाजी ने उन दिनों ख़ामोशी की एक अजीब सी चादर ओढ़ ली थी। नयना को यह तो समझ आ रहा था कि कुछ गलत हो रहा है पर क्या यह वह समझ नहीं पा रही थी। हालांकि मां के पास विवेक के फोन आते थे पर अधिकतर उस समय जब नयना घर पर नहीं होती थी। एक रोज़ उसकी तबियत कुछ ठीक नहीं थी तो वह बैंक से कुछ जल्दी घर आ गई उस समय मां किसी से फोन पर बड़े हंस हंस कर बातें कर रही थी मगर उसे देखते ही उन्होंने फोन रख दिया।