दो व्यंग्य

  • 6.6k
  • 1.6k

_________ बस...दो मिनट शुक्रगुज़ार हूँ सोशल मीडिया। एहसान मंद हूँ तुम्हारा। तुमने मुझे वाणी दी, रवानी दी वर्ना हम जैसे टटपूँजिए को पूछता कौन? तुम उस रेडीमेड फूड की तरह हो जिसका रैपर हटाया और खाया। किसी तरह का कोई झंझट नहीं। अब तो बस लिखता हूँ और झट मीडिया में डालता हूँ। दस पढ़ते हैं तो एकाध दो शब्द लिख भी डालते हैं। न भी लिखें तो क्या तुमने एक आप्सन 'पसंद" का रख छोड़ा है। बस उंगली से स्पर्श मात्र से 'लाइक' पाकर लेखक मन झूम-झूम उठता है। हींग लगा न फिटकरी रंग भी चोखा हो गया। बाप