व्यंग्य धंधा धरम का यशवंत कोठारी आजकल मैं धरम-करम के धंधे में व्यस्त हूँ.इस धंधे में बड़ी बरकत है,बाकी के सब धंधे इस धंधे के सामने फेल हैं.लागत भी ज्यादा नहीं,बस एक लंगोटी,एक कमंडल,कुछ रटे रटाये श्लोक ,कबीर ,तुलसी के कुछ दोहे.बस काम शुरू.हो सके तो एक चेली पाल लो बाद में तो सब दोडी चली आएगी.जिस गाँव में असफल रहे हैं वहीं उसी गाँव के बाहर जंगल में धुनी ,अखाडा,आश्रम.डेरा खोल्दो.काम शुरू.लेकिन डर भी लग रहा है.इन दिनों बाबाओं की जो हालत हो रही है वो किसी से छिपी हुई नहीं हैं.कई बाबा जेल में है कई जेल