शेखर ने असम्भव समझकर ललिता को पाने की आशा छोड़ दी। कर्इ दिन उसे डर अनुभव होता रहा। वह एकाएक सोचने लगता कि कहीं ललिता आकर सब बातें कहकर भण्डफोड़ न कर दे, उसकी बातों का जवाब न देना पड़ जाए, परंतु कर्इ दिन बीत गए, उसने किसी ने कुछ नहीं कहा। यह भी पता नहीं चला कि किसी को ये बाते मालूम हुर्इ अथवा नहीं। किसी प्रकार की चर्चा ललिता के घर में नहीं हुर्इ और न कोर्इ शेखर के यहाँ ही इस विषय के लिए आया।