डोर – रिश्तों का बंधन - 5

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नयना के एक बार कहने भर से प्रकाश मोसाजी ने कनाडा जाने वाली टीम में विवेक को शामिल करने की सिफारिश ही नहीं की वरन उसका चयन होने के बाद पासपोर्ट, वीज़ा आदि बनवाने में भी उसकी हर तरह की मदद की। विवेक का वीज़ा भी बन गया और टिकट भी आ गया। विवेक तो बहुत उत्साहित था पर जैसे जैसे उसके जाने का दिन पास आ रहा था नयना का दिल बैठा जा रहा था। विवेक का सामान पैक करने की आड़ में वह पूरा पूरा दिन खुद को उलझाए रखती पर कहीं चैन ना पाती। वह जानती थी उसकी इच्छा कोई महत्व नहीं रखती पर फिर भी वह चाहती थी कि विवेक अपना इरादा बदल दे। काश कोई तो हो जो विवेक को कनाडा ना जाने के लिए मना ले। पता नहीं विवेक ने यह कैसी ज़िद पकड़ ली है, डिप्लोमा तो यहां भारत में भी हो सकता है ना उसके लिए अपने परिवार से इतनी दूर परदेस जाने की क्या जरूरत है।