एक कारीगर की ख़ामोशी

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“भला इतने महँगे वार्डरोब बनवाने की क्या ज़रूरत है हरिराम?” अपने खर्चे से कुछ उकताया हुआ मैंने उससे साफ-साफ पूछा। “जिनके पास पैसे कम हैं, वे अपने घरों में लोहे की कोई अलमारी लाकर रख देते हैं। जिनके पास पैसे ही नहीं हैं, वे बिना उसके ही रह लेते हैं।” हरिराम सुथार ने बड़े सहज भाव से यह बात कही। हरिराम सीकर का एक कारीगर है और इन दिनों मेरे फ्लैट में मॉडुलर किचन, वार्डरोब और शो-केस बना रहा है। मुझे उसकी साफगोई निश्चय ही थोड़ी चुभी मगर कहीं-न-कहीं अच्छी भी लगी। लंबे लंबे और बीच में खाली छूटे दाँतोंवाला कारीगर हरिराम अपनी धुन में आगे बोलता चला जा रहा था, “इतना महँगा वार्डरोब बनवाने से आख़िर फ़ायदा क्या है!”