आगे को गयी उस भीड़ का जिधर को मुँह था, उधर थोड़ी दूर पर ही वहाँ का छोटा-सा गुरुद्वारा पड़ता था। वही गुरुद्वारा जहाँ हरनाम सिंह बिना नागा रोज ‘रहिरास’ का पाठ सुनने आते थे। भीड़ वहाँ पहुँच कर रुक गयी। गुरुद्वारे में उस वक्त केवल ग्रंथी था, जिसने कुछ देर पहले छत पर खड़े-खड़े जगीर सिंह के दवाखाने पर घट रही घटनाओं को अपनी आपनी भयभीत आँखों से देखा था। ग्रंथी ने तत्काल नीचे उतर कर सबसे पहला काम गुरुद्वारे का मुख्य द्वार बंद करने का किया था। फिर वह भीतर ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ के सामने मत्था टेक कर बैठ गया। उसका दिल घबरा रहा था। अकेला होने के कारण भी वह काफी भयभीत था। उसने अपनी आँखें बन्द कर लीं। उसके हिलते होंठ ‘वाहे गुरु, वाहे गुरु’ का जाप करने लगे। अभी-अभी देखा जगीर सिंह का हश्र चलचित्र की भाँति बार-बार उसके मस्तिष्क में उभर आता था।