गुरुचरण बाबू बहुत ही मिलनसार व्यक्ति थे। किसी भी छोटे-ड़े व्यक्ति से वे निःसंकोच बातें कर सकते थे। अपनी मिलनसार आदत के कारण ही, गिरीन्द्र के साथ दो-तीन बातें हने पर ही उनकी गहरी मित्रता हो गई थी। वह बड़े ही र्दढ़ विश्वासी थे। सरल स्वभाव के कारण वे चुतराई को कम महत्त्व देते थे। वाद-वाद में तर्क-वितर्क होने पर यदि हार भी जते थे, तो भी किसी प्रकार के रोष की रेखा उनके चेहरे पर न झलकती थी। कभी-कभी ललिता चुपचाप मामा की बगल में बैठकर सब कुछ सुनती रहती। जब वह आकर बैठ जाती, तो गिरीन्द्र के तर्क बहुत ही विद्वत्तापूर्ण होते। हृदय में आनन्द की लहरों के उज़ाव के साथ वह युक्तिययों को जुटाता चला जाता।