मैं सिर्फ एक जिस्म नहीं..शॉवर के नीचे खड़ी हो अपने शरीर को तेज हाथों से रगड़ने लगी।हाथों का दबाव लगातार बढता जा रहा था और आँखों से निकलता सैलाब बंध तोड़कर बह रहा था।शरीर के हर हिस्से पर साबुन मलती शैली शरीर पर लगी उस गंदगी को साफ करने की कोशिश कर रही थी जो पिछले बीस सालों से रोज उससे आ लगती।जिसे वह अपना प्यार समझ रही थी।वह तो असल में कोई था ही नहीं!पानी की तेज आवाज में उसे कुछ शब्द सुनाई देने लगे... औरत की अपनी एक सीमा होती है।उसके कुछ फर्ज होते है उनमें सबसे पहले अपने