डॉ. इला त्रिपाठी ने आगे अपनी मनोवैज्ञानिक व्याख्या जारी रखी, “मित्रो, कई बार समाज के कुछ ग़लत तत्व फेसबुक पर फेक अकाउंट खोलकर आपको प्रलोभित करते हैं, अपने आकर्षण में आपको फाँसते हैं, आपका ई-मेल माँगते हैं और फिर क्रमशः एक अश्लील दुनिया की ओर आपका प्रस्थान होने लगता है। तमाम बंदिशों में जीनेवाले हमारे समाज में यह उन्मुक्तता आपको अच्छी लगने लगती है मगर तत्जन्य उपजी विभिन्न विकृतियाँ धीरे-धीरे आपके अंदर घर करने लगती हैं और किसी ड्रग-एडिक्ट की तरह आप उसके नियमित प्रयोक्ता हो जाते हैं। इसे एक स्वस्थ मानसिकता के लिए सही नहीं माना जा सकता।”