एक अच्छा-भला दिन

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अशोका रोड पर ठीक बीजेपी मुख्यालय के सामने से वह गुज़र रही थी. उसको लग ही रहा था कि ट्रैफिक सिग्नल की लाइट हरी से पीली में बदलने वाली है. उसके आगे गाड़ियों का एक लम्बा सा रेला हरी बत्ती की हरियाली रोशनी में निकल कर उस पार जा रहा था. वो दिल ही दिल में मना रही थी कि बस उसकी गाडी भी इसी रेले में निकल जाए. हर ट्रैफिक सिग्नल पर जहाँ भी वह गाड़ियों के रेले में शामिल होती है, यही दुआ करती हुयी क्लच और एक्सलेटर के बीच संतुलन बनाते हुए, स्टीयरिंग व्हील को दम साधे साधते हुए, दायें-बाएं की अश्लील गाड़ियों के छू लेने के इरादों से बचती हुयी, बेदाग़ निकल जाने की कोशिश करती है.