टुकड़ा-टुकड़ा ज़िन्दगी - 1

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ढोलक की थापों के साथ बन्ना घोड़ी गाने वाली का सुर भी तार-सप्तक नापने लगता था। बीच-बीच में कहीं सुर धीमा पड़ता तो नसीबन खाला की हाँक...अरे, सुबह कुछ खाया-पीया नहीं क्या लड़कियों...? बिल्कुल ही मरी आवाज़ निकल रही तुम सब की...। भला ऐसे भी गाया जाता है क्या...? अरे, थोड़ा जोश लाओ...जोश...। शादी का घर है भई, लगे भी तो कि जश्न का माहौल है...।