फ़हमीदा की जब शादी हुई तो उस की उम्र उन्नीस बरस से ज़्यादा नहीं थी। उस का जहेज़ तैय्यार था। इस लिए उस के वालदैन को कोई दिक़्क़त महसूस न हुई। पच्चीस के क़रीब जोड़े थे और ज़ेवरात भी, लेकिन फ़हमीदा ने अपनी माँ से कहा कि वो सुर्मा जो खासतौर पर उन के यहां आता है, चांदी की सुर्मे-दानी में डाल कर उसे ज़रूर दें। साथ ही चांदी का सुर्मचो भी। फ़हमीदा की ये ख़ाहिश फ़ौरन पूरी होगई। आज़म अली की दुकान से सुर्मा मंगवाया। बरकत की दुकान से सुर्मे-दानी और सुर्मचो लिया और इस के जहेज़ में रख दिया।